90 के दशक की महिलाओं ने घर

पर 100 रुपए से कमाकर बनाए 10 लाख रुपए!

प्रस्तावना

90 के दशक का भारत एक परिवर्तनशील समय था। इस दशक में बहुत सारी महिलाओं ने अपने घरों से निकलकर अपने कौशल और प्रतिभाओं को अपनी आर्थिक स्वतंत्रता का आधार बनाया। जहां एक ओर पुरानी सामाजिक मान्यताएँ लोगों के दिमाग में घर कर गई थीं, वहीं दूसरी ओर कई महिलाएँ इस बंधन से निकलने का प्रयास कर रही थीं। वे अपनी रचनात्मकता और उद्यमिता को नई दिशा देने में लगी थीं, और 100 रुपये से शुरुआत करके 10 लाख रुपये कमाने में सफल रहीं। इस लेख में हम उन कारणों, योजनाओं और उपायों का पता लगाएंगे जिनके माध्यम से ये महिलाएँ अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम हुईं।

प्रारंभिक दौर: शिक्षा और मानसिकता का परिवर्तन

- शिक्षा का महत्व

90 के दशक में महिलाओं की शिक्षा पर जोर दिया जाने लगा। कई राज्यों में कार्यक्रम चलाए गए ताकि लड़कियों को स्कूल में भर्ती किया जा सके। इस शिक्षा ने उन्हें आत्मविश्वास और योग्यताओं से भर दिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद, महिलाएँ अब अधिक आत्मनिर्भर हो गई थीं और उनके पास कुछ नया करने का उत्साह था।

- मानसिकता का विकास

इस दशक में महिलाओं की मानसिकता में परिवर्तन आया। वे अब केवल घर की गृहिणी बनने तक सीमित नहीं रह गईं। उन्होंने समझा कि वे समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह मानसिकता परिवर्तन उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बना।

उद्यमिता की ओर कदम

1. कौशल विकास

- कई महिलाएँ विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भाग लेने लगीं, जैसे सिलाई, कढ़ाई, मिडिल क्लास खाने की तैयारी आदि। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने अपने हाथों से अनेकों कलात्मक वस्तुएं बनाना शुरू किया।

2. घरेलू व्यवसाय शुरू करना

- सिलाई और कढ़ाई: इनमें से बहुत सारी महिलाएं सिलाई केंद्र खोलने लगीं, जहां उन्होंने अपने कौशल का प्रदर्शन किया और स्थानीय बाजार में अपनी बनाई वस्तुओं को बेचा।

- हेंडमेड प्रोडक्ट्स: हाथ से बने सामान बनाना, जैसे कि ज्वेलरी, सजावट की वस्तुएँ, इत्यादि, भी एक बड़ा व्यापार बन गया।

- खाद्य उद्योग: कई महिलाएं ताजे पकवान बनाने में विशेषज्ञता हासिल करने लगीं। होममेड मिठाइयां, हलवा, चटनी आदि की मांग बहुत बढ़ गई।

3. नेटवर्किंग और मार्केटिंग

महिलाओं ने एक-दूसरे के साथ मिलकर नेटवर्क बनाना शुरू किया। खुद की कला और संस्कृति को बेचने के लिए उन्होंने स्थानीय मेलों, बाजारों और ऑनलाइन प्लेटफार्मों का उपयोग करना शुरू किया। इसने उन्हें अपनी पहचान बनाने और व्यापक ग्राहकों तक पहुंचने का अवसर प्रदान किया।

सफलता की कहानियाँ

1. कमला देवी: सिलाई से समृद्धि

कमला देवी एक साधारण गृहिणी थीं जो अपनी कानों में बहते संगीत की तरह सिलाई में माहिर थीं। उन्होंने अपने घर के एक हिस्से में सिलाई का काम शुरू किया। कमला ने पहले महीने में महज 100 रुपये से शुरुआत की थी, लेकिन उनके बनाए कपड़ों की मांग ने उन्हें शहर भर में प्रसिद्ध कर दिया। उन्होंने धीरे-धीरे अपने व्यवसाय का विस्तार किया और 10 लाख रुपये की पूंजी जुटाई।

2. निर्मला: खाने की महारानी

निर्मला एक घरेलू महिला थीं जिन्होंने घरेलू खाने की छोटे पैकेट बेचने का निश्चय किया। शुरुआत में उन्होंने अपने बचत से 100 रुपये निवेश किए और अपने सौ रोटियों की कीमत रखी। कई महीनों में, उनका व्यापार इतना सफल हो गया कि वह अपने परिवार के खर्चे उठाने में सक्षम हो गईं और उनके पास 10 लाख रुपये जमा हो गए।

सामजिक प्रभाव

1. महिलाओं का स्वतंत्रता की ओर कदम

इन सफलताओं ने अन्य महिलाओं को भी प्रोत्साहित किया। धीरे-धीरे समाज में यह सोच विकसित होने लगी कि महिलाएं सिर्फ घर की जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र भी हो सकती हैं।

2. परिवार में सहयोगी भूमिका

महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता ने परिवारों में उनकी स्थिति को मजबूत किया। अब पति-पत्नी दोनों मिलकर काम करते थे और एक-दूसरे का सम्मान बढ़ा।

90 के दशक की महिलाओं ने यह साबित कर दिया कि अगर उनमें जिद और सामर्थ्य हो तो कोई भी लक्ष्य पाना संभव है। उन्होंने अपने छोटे-से निवेश से बड़े सपनों को साकार किया और समाज में एक नया परिवर्तन लाया। घर के चार दीवारों में बैठकर अपने और अपने परिवार के भविष्य को संवारने का साहस हर किसी में नहीं होता, लेकिन इन महिलाओं ने यह कर दिखाया।

यह यात्रा सिर्फ आर्थिक स्वतंत्रता की नहीं, बल्कि आत्मा की भी थी। 90 के दशक की महिलाएं सिर्फ 100 रुपये से शुरू हुईं, लेकिन उनके मेहनत और लगन ने उन्हें 10 लाख रुपये की औकात में बदल दिया। आज, उनके योगदान को हमें नहीं भूलना चाहिए क्योंकि उन्होंने महिला सशक्तिकरण की नींव रखी है।